Ancient History
* प्राचीन भारत का इतिहास
- भारतीय इतिहास के पिता मेगास्थनीज को कहा जाता है
- मध्य काल में भारत को हिंदुस्तान कहा जाने लगा यह शब्द भी फारसी हिंदू से बना है, यूनानी भाषा के इंदे के आधार पर इसे इंडिया कहने लगे।
- भारत की जनसंख्या का निर्माण जिन प्रमुख नस्लो के लोगो के मिश्रण से हुआ है वे इस प्रकार है – प्रोटो – आस्ट्रेलोयाड , पैलियो मेडिटेरियन , काकेशायड , निग्रोयड और मंगोलायड।
- सबसे पहले इतिहास को तीन भागों में बाटने का श्रेय जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ सेलियरस को है।
धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी —
- भारत का सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि वेद व्यास को माना जाता है। वेद बसुद्धैव कुटुम्बकम का उपदेश देता है।
- वेद चार है – ऋग्वेद , यजुर्वेद ,सामवेद एवं अथर्ववेद इन चार वेदों को संहिता कहा जाता है।
1-ऋग्वेद —
- ऋचाओ के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है इसमें 10 मंडल 1028 शुक्त्त एवं 10462 ऋचाऐं है , इस वेद के ऋचाओ को पढ़ने वाले ऋषि को होते कहते है।
- विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है।
- इसके 9वे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
- इसके 8वे मंडल में हस्तलिखित ऋचाओ को खिल कहा जाता है
- चातुष्वर्ण्य समाज की कल्पना आदि का श्रोत ऋग्वेद के 10वे मंडल में वर्णित पुरुष शुक्त में है।
- ऋग्वेद के कई परिच्छेदों में प्रयुक्त अधन्य शब्द का संबंध गाय से है
- वामनवावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत ऋग्वेद है।
- प्राचीन इतिहास के साधन ले रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।
- ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओ की रचना की गई है तथा
- बृहस्पति — 11 , घोड़ा — 215 , शिव — 3 , पिता — 335 , सरस्वती — 3 , गंगा — 1 , यमुना —3 , सभा —8 , समिति — 9 , राष्ट्र — 10
2 – यजुर्वेद —
- यजुर्वेद के पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते है। इस वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि – विधानों का संकलन मिलता है।
- इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है।
- यह एक ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनो में है ।
3 – सामवेद —
- इसमें मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गए जाने वाले ऋचाओ का संकलन है।
- इसके पाठकर्ता को उद्रातु कहते है।
- इसमें 1810 शुक्तत है जो प्रायः ऋग्वेद से लिए गए है।
- सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
- ( यजुर्वेद और सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नही है )
4 – अथर्ववेद —
- अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य है।
- अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निंदा करता है।
- इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का वर्णन है ।
- पृथ्वीशुक्त अथर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है।
- अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा जाता है तथा कुरू देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण करता है।
- शाकल शाखा ऋग्वेद की एकमात्र जीवित शाखा है।
- शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद की दो शाखाएं है।
- माध्यन्दिन और काण्व शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं है।
- काठक कृष्ण यजुर्वेद से जुड़ी शाखाएं है।
- शौनक और पंपालाद अथर्वेद की दो शाखाएं है।
- ( सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्वेद है
ब्राह्मण , आरण्यक तथा उपनिषद
वेद ब्राह्मण ग्रन्थ
ऋग्वेद — ऐतरेय तथा कौशीतकी
यजुर्वेद — तेतिरीय तथा शतपथ
सामवेद — पंचविश
अथर्वेद — गोपथ
- वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है
- उपनिषदों के संख्या 108 है।
- स्त्री की सबसे गिरी हुई स्तिथि मैत्रैणी संहिता से प्राप्त होती है
- शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष को अर्धांगिनी कहा गया है।
- जाबालोपनिषद में चारो आश्रमों का उल्लेख मिलता है।
- स्मृतिग्रंथों में सबसे एवं प्रमाणिक मनुस्मृति मानी जाती है, यह शुंग वंश काल का मानक ग्रंथ है।
बेदांग एवं सूत्र —
- बेदंगों की संख्या 6 है ( शिक्षा , कल्प , निरुक्त , व्याकरण , छंद ज्योतिष )
- सूत्रों में गौतम धर्मशुत्र सबसे प्राचीन माना गया है।
पुराण —
- पुराणों की संख्या 18 है जिनमे केवल 5 में ही राजाओं की वंशावली पाई जाती है
- ( मत्स्य , वायु , विष्णु , ब्राह्मण , एवम् भागवत ) मत्स्य सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक पुराण है।
- स्त्रियां तथा शुद्र जिन्हे वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी वो भी पुराण सुन सकते है।
बौद्ध , जैन एवं अन्य साहित्य —
- कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है इसमें 8 सर्ग है इसमें प्रारंभ से लेकर 12वी सदी तक काश्मीर के शाशको का वर्णन है।
- अष्टाध्याई के लेखक पाणिनी है , इसी में पहले बार लिपि शब्द का प्रयोग हुआ।
- पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे।
विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी —
यूनानी रोमन लेखक : –
- टेसियस ईरान का राजवैद्य था।
- हेरोडेटस को इतिहास का पिता कहा जाता है।
- मेगास्थनीज सेल्युकस निकेटर का राजदूत था जो चंद्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था। इसके द्वारा रचित पुस्तिका इन्डिका है।
- डायमेकस सीरियन नरेश आंतियोकश का राजदूत था जो बिंदूसार के दरबार ने आया था।
- डायोनिसियस मिश्र नरेश टोलमी फीलेडेल्फ्स का राजदूत था। जो अशोक के राज दरबार में आया था
- टोलमी उसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी।
- प्लिनी इसने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी।
- पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रयन सी इसने 80 के ई. में भारत के वस्तुओं तथा बंदरगाहों के बारे ने जानकारी दी।
- चीनी लेखक : –
- फाहियान ( फ यू की ) चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार ने आया था। इसने मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया और 14 वर्षो तक भारत में रहा।
- संयुग्न 518 ई. में भारत आया था।इसने 3 वर्षो की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित की।
- हेनसांग 629 ई. में हर्षवर्धन के शाशनकाल में भारत आया था। और सर्वप्रथम भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा । 15 वर्ष भारत में रहकर 645 में चीन लौट गया। वह नालंदा विश्वविद्यालय में अध्यन करते थे। इनका भ्रमण वृतांत सी यू की नाम से प्रसिद्ध है। इनके अनुसार सिंध का राजा शुद्र था , इन्होंने भगवान बुद्ध के साथ साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओं का पूजन किया।
- हेनसांग के अध्यन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे। यह विश्वविद्यालय बौद्ध दर्शन के लिए प्रसिद्ध था।
- इत्सिंग 7 वी . शताब्दी के अंत में भारत आया था इसने अपने विवरण में नालंदा और विक्रमशिला विश्विद्यालय का जिक्र किया है।
अरबी लेखक : –
- अलबरूनी ( तुर्कमेनिस्तान ) मुहम्मद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति किताब – उल – हिंद या तहरीक – ए – हिंद ( भारत की खोज ) है।
- इब्न बतूता द्वारा अरबी में लिखा गया यात्रा वृतांत रेहला है। 1333 ई. में दिल्ली पहुंचने पर उसकी विद्वांता से प्रभावित होकर मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी ( न्यायाधीश ) बना दिया।
अन्य लेखक : –
- तारानाथ एक तिब्बती लेखक था ,इसने कग्यूर और तंग्यूर नामक ग्रंथ की रचना की।
- मार्कोपोलो 13वी शताब्दी के अंत में पांड्या देश को यात्रा पर आया था।
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी —
- भारतीय पुरातत्व शास्त्र के पिता सर अलेक्जेंडर कनिंघम को कहा जाता है।
- 1400 ई. पूर्व के अभिलेख ‘ बोगाज कोई ‘ से वैदिक देवता मित्र वरुण , इंद्र और नासत्य के नाम मिलते है।
- होलियोडोरस के वेशनगर गरुड़ स्तंभ लेख से प्राप्त होता है।
- सर्वप्रथम भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुंफा अभिलेख में है।
- सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सहगौरा है।
- सबसे पहले भारत पर होनेवाले हुन आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।
- सती – प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य ऐरन अभिलेख ( भानुपगुप्त ) से प्राप्त होती है।
- सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है।
- रेशम बुनकर की श्रेणीयो की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है ।
- कश्मीरी नवपाषानिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास का साक्ष्य मिला है।
- प्राचीनतम सिक्के को आहत सिक्के कहा जाता है।
- सर्वप्रथम सिक्को पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया ।
- समुद्रगुप्त के वीना बजाती हुई मुद्रा वाली सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है।
- आरिकमेदु ( पुदुचेरी के निकट ) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए है।
- सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा , मलाया , कंबोडिया और जावा से स्थापित हुए।
- अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।
- उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर और दक्षिण भारत के मन्दिरों की कला द्रविड़ शैली कहलाती है। दक्षिणापथ के मन्दिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ दोनो शैलियों का प्रभाव पड़ा अतः ये वेसर शैली कहलाती है।
- पंचायत शब्द मंदिर रचना शैली से सम्बन्धित है।
- आग का अविष्कार पूरापाषाण काल एवं पहिए का अविष्कार नव -पाषाण काल में हुआ।
- मनुष्य में स्थाई निवास की प्रवृति नव – पाषाण काल में हुई तथा कुत्ता को सबसे पहला पालतू जानवर बनाया।
- मनुष्य ने सर्वप्रथम तांबा धातु का प्रयोग किया और प्रथम औजार कुल्हाड़ी था। ( प्राप्त स्थल अतिरंपक्कम )
- कृषि का अविष्कार नव – पाषाण काल में हुआ , अन्न उत्पादक स्थल मेहरगढ़ पश्चिमी ब्लूचिस्तान में अवस्थित है।
- कृषि किए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूं एवं जौ थी लेकिन मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त अनाज चावल था।
- कृषि का प्रथम उदाहरण मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ है।
- रॉबर्ट ब्रूस फूट पहले व्यक्ति जिन्होंने 1863 में भारत में औजारो की खोज की , पल्लवराम नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पूरापाषाण कलाकृति की खोज हुई थी।
- मध्यकाल के विषय में जानकारी सर्वप्रथम सी. एल. कलाइल ने विंध्य क्षेत्र में लघु पाषानोपकरन खोज निकाले।
- भारत में मानव अस्थिपंजर मध्य पाषाण काल से ही प्राप्त होने लगता है।
- भारत में नवपाषाणकालीन सभ्यता का प्रारंभ 4000 ई. पूर्व के लगभग हुआ है।
- भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो ( मृतकों का टीला ) है।
- असम का स्वेतभ्रु गिबन भारत के पाया जाने वाला एकमात्र मानवाभ कपी है
- ईनामगांव ताम्रपाषाण युग की एक बड़ी बस्ती है इसका संबंध जोर्वे संस्कृति से है।
- भारत में शिवालक की पहाड़ी से जीवाश्म का प्रमाण मिला है।
- भीमबेटका की गुफा शैलचित्र के लिए प्रसिद्ध है।
- भारत में मनुष्य संबंधी सबसे पहला प्रमाण नर्मदा घाटी में मिला है।
- भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी रिजले थे।
महत्वपूर्ण अभिलेख —
अभिलेख शासक
हाथीगुम्फा अभिलेख ( तिथि रहित ) — कलिंग राज खारवेल
जूनागढ़ ( गिरनार ) अभिलेख — रुद्रदामन
नासिक अभिलेख — गौतमी बलश्री
प्रयाग अभिलेख — समुद्रगुप्त
एहोल अभिलेख — पुल्केशीन 11
मंदसौर अभिलेख — मालवा नरेश यशोवर्मन
ग्वालियर अभिलेख — प्रतिहार नरेश भोज
भीतरी एवं जूनागढ़ अभिलेख — स्कंदगुप्त
देवपाड़ा अभिलेख — विजयसेन
सिंधु सभ्यता —
- रेडियो कार्बन c¹⁴ पद्धति के द्वारा सिंधु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई. पूर्व से 1750 ई. पूर्व मानी गई है।
- कार्बन — C¹⁴ की खोज अमेरिका की प्रसिद्ध रसायन शास्त्र वी. एफ. लिवि द्वारा 1946 ई. में की गई थी।
- सिंधु सभ्यता की खोज 1921 ई. में दया राम शाहनी ने की थी।
- सिंधु सभ्यता को अधाएतिहासिक एवं कांस्य युग भी कहा जाता है
- इस सभ्यता के मुख्य निकासी द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे।
- सर जॉन मार्शल ने 1924 ई. में सिंधु नामक एक उन्नत नगरीय सभ्यता पाए जाने की विधिवत घोषणा की।
- सिंधु सभ्यता या संधव सभ्यता नगरिया सभ्यता थी।
- दैमावादस्थान पर हड़प्पा समय के रथ के एक प्रतिमा प्राप्त हुईथी
- स्वतंत्रता के पश्चात हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए है।
- सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो है जबकि भारत में इसका सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी ( घग्गर ) है जो हरियाणा के हिसार जिले में है।इसकी खोज 1963 में सूरजभान ने की थी
- लोथल एवं सुटकोदता सिंधु सभ्यता का बंदरगाह है।
- जूते हुए खेत और नक्क्सीदार ईटो का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानघर सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड अग्निकुंड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए है
- मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य की मूर्ति प्राप्त हुई है।
- मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदडो में मिले है।
- सिंधु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती है । जब अभिलेख एक से अधिक पंक्ति का होता था तो पहली पंक्ति दाई से बाई और दूसरी पंक्ति बाईं से दाई ओर लिखी जाती है।
- लेखनकला की उचित प्रणाली विकसित करनेवाली पहली सभ्यता सुमेरिया की सभ्यता है।
- सिंधु सभ्यता के लोगो ने नगरों तथा घरों के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
- केवल लोथल नगर का दरवाजा मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
- सिंधु सभ्यता को मुख्य फसल गेहूं और जौ थी।
- सिंधु वाली मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।
- मिटी से बने हल का साक्ष्य बनमाली से मिला है।
- चावल का प्रथम साक्ष्य लोथल से मिले है और रंगपुर से भी ।
- घोड़े के अस्थिपंजर सुरकोदता , कालीबांगन एवं लोथल से मिले है।
- तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी।
- सिंधु वासी यातायात के लिए बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे।
- मोसोपटानिया के अभिलेखों में वर्णित मेलुहा शब्द का अभिप्राय सिंधु सभ्यता से ही है।
- संभवतः हड्डापा संस्कृति का शासन वार्णिक हाथों में था।
- सिंधु वासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का उपयोग करते थे।
- सिंधु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किए हुए लाल मिट्टी के वर्तन बनाते थे।
- सिंधु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
- कालीबंगन एक मात्र हड़पकालीन स्थल था जिसका निचला शहर भी किले से घिरा हुआ था। कालीबंगन्न का अर्थ है काली चुड़िया पर्दा – प्रथा एवं वेस्यावृति सिंधु सभ्यता में प्रचलित थी।
- आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है।
- मिलनेवाली साक्ष्य स्थान
बंदरगाह - लोथल और सुतकोदता
चावल - लोथल और रंगपुर
अग्निकुंड - लोथल और कालीबंगन
घोड़े का अस्थिपंजर - लोथल, कालीबंगन , सुतकोदता
मनके के कारखाने - लोथल एवं चन्हूदड़ो
जूते हुए खेत और नक्कासीदार ईट - कालीबांगन
स्नानगार - मोहनजोदड़ो
नर्तकी के कांस्य की मूर्ति - मोहनजोदड़ो
टेराकोटा - बनमाली
मिटी की बने हल - बनमाली
वैदिक काल
- वैदिक काल का विभाजन दो भागो में 1. ऋगवेदिक काल ( 1500 – 1000 ई. पूर्व )और 2. उत्तर वैदिक काल ( 1000 – 600 ई. पूर्व ) किया गया है।
- आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान में बसे।
- मैक्समूलर ने आर्यों का निवास – स्थान मध्य एशिया ( बैक्टीरिया ) को माना जाता है।
- आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई ,यह एक ग्रामीण सभ्यता थी ।
- आर्यों की भाषा संस्कृत थी।
- आर्य ( श्रेष्ठ ) शब्द भाषा – समूह को इंगित करता है।
- पिग्गट को हड्डप्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी है।
- सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
- वृक्ष पूजा एवं शिव – प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते है।
- स्वास्तिक चिन्ह संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है , इस चिन्ह से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
- सिंधु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नही मिले है।
- पशुओं में कुबड़ा वाला साँढ सिंधु सभ्यता के लोगो के लिए विशेष पूजनीय था।
- स्त्री मृणमूर्तियां ( मिट्टी की मूर्तियां ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है की सिंधु समाज मातृसतात्मक था।
- आर्यों के प्रशासनिक इकाई आरोही क्रम से इन पांच भागों में बाटा गया है — कुल , ग्राम , विशु , जन , राष्ट्र ।
- ग्राम के मुखिया ग्रामिणी , विश का प्रधान विशपति एवं जन का शासक राजन कहलाते थे।
- राज्याधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे, वशिष्ट रूढ़िवादी एवं विश्वामित्र उदार पुरोहित थे।
- सूत , रथकर व कम्मादी नामक अधिकारी रत्नी कहे जाते थे इनकी संख्या राजा सहित करीब 12 हुआ करती थी।
- पुरप — दुर्गपति एवं स्पश — जनता की गतिविधियों को देखनेवाले गुप्तचर थे।
- बाजपति — गोचर भूमि का अधिकारी होता था।
- उग्र — अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था।
- ऋग्वेद में किसी तरह के न्यायाधिकारी का उल्लेख नहीं है।
- सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी।
- सभा , श्रेष्ठ एवं संभ्रांत लोगो की संस्था थी जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी।
- स्त्रियां सभा एवं समिति में भाग ले सकती थी।
- सभा एवं समिति के अध्यक्ष को ईशान कहा जाता है।
- युद्ध में काबिले का नेतृत्व राजा करता था , युद्ध के लिए गविस्टी शब्द का प्रयोग किया जाता था जिसका अर्थ है — गायों की खोज।
- दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख 7वे मंडल में है यह युद्ध परूषणी नदी के तट पर सुदास एवं दस जनों के बीच लड़ा गया।
- ऋगवेदिक काल में समाज व्यवसाय के आधार पर 4 वर्गों में विभक्त था , ( ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र )
- आर्यों का समाज पितृप्रधान है , समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल था, जिसका मुखिया पिता होता था जिसे कुलप कहा जाता था।
- स्त्रियां इस काल में यज्ञ में भाग लेती थी ।
- बाल विवाह एवं पर्दा – प्रथा का प्रचलन नहीं था।
- विधवा अपने देवर से विवाह कर सकती थी।
- स्त्रियां शिक्षा ग्रहण करती थी ,लोपामुद्रा , घोषा , सिकता , आपला एवं विश्वास जैसी विदुषी स्त्रियों का वर्णन है।
- गार्गी ने याज्ञवल्क्य को वाद – विवाद की चुनौती दी थी।
- जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिला को अमाजू कहा जाता था।
- जीविकोपार्जन के लिए वेद – वेदांग पढ़ने वाले अध्यापक को उपाध्याय कहा जाता था।
- आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था।
- आर्यों मुख्यताः 3 प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे —1. वास , 2. अधिवास और 3. उष्णीय। अंदर पहनने वाले कपड़े को निवी कहा जाता था।
- महर्षि कणाद को भारतीय परमाणुवाद का जनक कहा गया है।
- आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे — संगीत , रथदौड़ , घुड़दौड़ एवं ध्रुतक्रीड़ा।
- आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था।
- गाय की हत्या करने या घायल करने वालो को मृत्युदंड अथवा देश से निकालने की व्यवस्था की गई थी।
- आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा और प्रिय देवता इंद्र थे।
- आर्यों द्वारा खोजी गई पहली धातु लोहा जिसे श्याम अयस कहा जाता था। तांबे को लोहित अयस कहा जाता था
- भारतीयों को लोहे का ज्ञान ईसापूर्व 8 वी. सदी में प्राप्त हुआ।
- व्यापार हेतु दूर दूर जाने वाले व्यक्ति को पणी कहते थे।
- लेन देन में वस्तु विनिमय की प्रणाली प्रचलित थी।
- ऋण देकर ब्याज लेने वाले को वेकनॉट कहा जाता था।
- अग्नि देवता और मनुष्य के बीच मध्यस्थ निभाने वाले देवता थे।
- ऋग्वेद में उल्लेखित सरस्वती को सबसे पवित्र नही मान गया है।
- ऋग्वेद में सिंधु नदी का उल्लेख सर्वाधिक बार हुआ है।
उत्तर वैदिक काल —
- उत्तर वैदिक काल में इंद्र के स्थान पर प्रजापति ( ब्रम्हा ) सबसे अधिक प्रिय देवता हो गए , विष्णु के तीन पगो को कल्पना का विकास उत्तरवैदिक काल में ही हुआ।
- उत्तरावैदिक काल में राज्याभिषेक के समय राजशुय यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था।
- उत्तरवैदीक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारती होने लगा।
- इस काल में हल को शिरा व हल रेखा को सीता कहा जाता था।
- इस काल में निष्क और शतमान मुद्रा की इकाइयां थी , सिक्को के चलन का कोई प्रमाण नहीं था।
- साख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे प्राचीन है । इसके अनुसार मूल तत्व 25 है जिनमे प्रकृति पहला तत्व है।
- सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
- गायत्री मंत्र सवित्री नामक देवता को संबोधित है जिसका संबंध ऋग्वेद से है।
- लोगो को आर्य बनाने के लिए विस्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की।
- श्राद्ध की प्रथा पहले – पहल दत्तात्रेय ऋषि के बेटे निमि ने शुरू की
- इस काल में पहले बार पक्की ईट का प्रयोग कौशांबी नगर में हुआ।
- महाकाव्य दो है — 1. रामायण और महाभारत
- महाभारत का पुराना नाम जय सहिता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।
- गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ।
महाजंनपदो का उदय —
- बुद्ध के जन्म के पूर्व भारतवर्ष कुल 16 जनपदों में बटा हुआ था इनकी जानकारी हमे बौद्धग्रंथ अंगुतर निकाय से मिलती है।
जैन धर्म —
- जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास कल्पसूत्र (रचैता भद्रबाहु ) से ज्ञात होता है जिसमे भगवान महावीर के जीवन का वर्णन है।
- जैनधर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे।
- जैनधर्म के 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे को काशी के इक्ष्वाकु वंशिय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में संन्यास जीवन को स्वीकारा।
- जैनधर्म के 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए। इनका जन्म 540 ई. पूर्व में कुंडग्राम ( वैशाली ) में हुआ। इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञात्रिक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी।
- महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अन्नोजा प्रियदर्शनी था।
- महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था , इन्होंने 30 वर्ष की उम्र मे माता – पिता की मृत्यु के पश्चात बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर सन्यास – जीवन को स्वीकारा था।
- 12 वर्ष के कठिन तपस्या के बाद महावीर को जृंभिक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए सम्पूर्ण ज्ञान का बोध हुआ। इसी समय से महावीर जिन ( विजेता ) अर्हत ( पूज्य ) निर्ग्रंथ ( बंधनहीन ) कहलाए।
- महावीर ने अपना पहला उपदेश प्राकृत ( अर्धमागधी ) भाषा में दिए थे।
- महावीर के अनुयायियों को निर्ग्रंथ कहा जाता है।
- महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जामिल बने।
- प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी ।
- महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में विभाजित किया था।
- आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर के मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जो जैनधर्म का प्रथम थेरा या उपदेशक हुआ।
- महावीर स्वामी के भिक्षुणी संघ की प्रधान चंदना थी।
- जैनधर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है।
- जैनधर्म में आत्मा की मान्यता है।
- जैनधर्म को माननेवाले राजा थे — उदयीन , वंदराजा , चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंग नरेश खारवेल , अमोघवर्ष ।
- मैसूर के गंग वंश के मंत्री , चामुंड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10 वी. शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबली की मूर्ति ( गोमतेश्वर की मूर्ति ) का निर्माण किया गया। गोमतेश्वर की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है । यह मूर्ति 18 मीटर ऊंची है एवं एक ही चट्टान को काटकर बनाई गई है।
- खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया।
- मौर्योत्तर युग में मथुरा जैनधर्म का प्रसिद्ध केंद्र था।
- जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसुत्र में है।
- 72 वर्ष की उम्र में महावीर की मृत्यु 468 ई. पू. में बिहार राज्य के पावापुरी में हो गई।
- मल्लराज सृस्तिपाल के राजप्रसाद ( किले ) में महावीर को निर्वाण ( मृत्यु ) प्राप्त हुआ था।
बुद्धधर्म —
- जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है।
- हीनयान का प्रमुख ग्रंथ कथावस्तु है। जिसमे भगवान बुद्ध के जीवन का वर्णन है।
- बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। इन्हे एशिया का ज्योति भी कहा जाता है ।
- गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. कपिलवस्तु के लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था।
- इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे।
- इनकी माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवे दिन ही हो गई थी इनका लालन – पालन सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने किया था।
- इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
- इनका विवाह 16 वर्ष की उम्र में यशोधरा के साथ हुआ । इनके पुत्र का नाम राहुल था।
- 29 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ ने गृह – त्याग किया जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।
- गृह – त्याग के बाद सिद्धार्थ ने वैशाली के अलरकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की । अलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरु थे
- अलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रुद्रकरामपुत से शिक्षा ग्रहण की ।
- बिना अन्न – जल ग्रहण किए 35 वर्ष की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना ( फाल्गू ) नदी के किनारे , पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ ।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने गए और वह स्थान बोधगया कहलाया।
- बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ ( ऋषिपत्नम ) में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया है।
- अदभुत भारत के अनुसार 49 दिनों की कठिन तपस्या में बाद बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- बुद्ध ने अपना पहला उपदेश पाली भाषा में दिए ।
- बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए
- इनके प्रमुख अनुयायि शासक थे — बिम्बिसार , प्रसेनजीत , व उदयीन।
- बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में 483 ई. पू . में कुशीनारा ( देवरिया , उत्तर प्रदेश ) में चुंद द्वारा अर्पित भोजन के बाद हो गई। जिसे बौद्धधर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है ।
- बुद्ध के जन्म एवं मृत्यु की तिथि को चीनी परंपरा के कैंटोन अभिलेख के आधार में निश्चित किया गया है।
- बौद्धधर्म के बारे में हमे विशद ज्ञान त्रिपिटक से प्राप्त होता है ( विनयपिटक , सूत्रपीटक , अभिधम्मपीटक — भाषा ( पाली ) थेरवाद मत की पाली त्रिपिटक सबसे पुराना है।
- पाली त्रिपिटको को पहली शताब्दी ई. पू . में श्रीलंका के शासक वत्तगामिनी की देख देख में पहली बार लिपिबद्ध किया गया।
- थेरगाथा ( बौद्ध भिक्षुओं का गीत ) और थेरीगाथा ( बौद्ध भिक्षुणीयो का गीत ) है।
- बौद्धधर्म पूर्णतः अनीश्वरवादी है , इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नही है ।
- बौद्धधर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है।
- तृष्णा को क्षीण हो जाने की अवस्था को ही बुद्ध ने निर्वाण कहा है।
- ” विश्व दुखो से भरा है ” का सिद्धांत बुद्ध ने उपनिषद से लिया है।
- बौद्धधर्म के प्रचार के लिए जिन्होंने सन्यास जीवन ग्रहण किया उन्हे भिक्षुक कहा जाता गया और गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को ” उपासक ” कहा गया।
- बौद्धधर्म में सम्मिलित होने की न्यूनतम आयु सीमा 15 वर्ष थी।
- बौद्धधर्म में प्रविष्ट होने को उपसम्पदा कहा जाता है।
- बौद्धधर्म के त्रिरत्न है — बुद्ध , धम्म एवं संघ।
- चतुर्थ बौद्ध संगीती में बाद बौद्धधर्म दो भागो हीनयान और महायान में विभाजित हो गया।
- महायान संप्रदाय का आदर्श बोधिसत्व है।
- हीनयान का आदर्श अर्हत पद को प्राप्त करना है।
- बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र त्योहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है , इसका महत्व इसलिए है को बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म , ज्ञान की प्राप्ति एवं मृत्यु की प्राप्ति हुई।
- निर्वाण बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है जिसका अर्थ है ” दीपक का बुझ जाना ” अर्थात जीवन – मरण के चक्र से मुक्त हो जाना।
- अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्धधर्म और जैनधर्म में समानता है।
- बुद्ध ने अपना अंतिम जन्म शाक्य मुनि के रूप में लिया परंतु इसके उपरांत मैत्रेय तथा अन्य अनाम बुद्ध अभी अवतरित होने शेष है।
- तिब्बत , भूटान एवं पड़ोसी देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार पद्मसंभव ने किया , इनका संबंध बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा से था। इनकी 123 फिट ऊंची मूर्ति हिमाचल प्रदेश रेवाल सर झील में है।
- भारत में उपासना की जाने वाली प्रथम मूर्ति संभवतः बुद्ध की थी।
बौद्ध सभाएं
सभा समय स्थान अध्यक्ष शासन काल
1st 483 ई. पू. राजगृह महाकश्यप अजादसत्रु
2nd 383 ई. पू. वैशाली सबाकामी कालाशोक
3rd 255 ई. पू. पाटलिपुत्र तीस अशोक
4th ई. की प्रथम श. कुंडलवन वसुमित्र कनिष्क
भारत के महत्वपूर्ण बौद्ध मठ —
मठ स्थान राज्य
टाबो मठ तबो गांव हिमाचल प्रदेश
नामग्याल मठ धर्मशाला हिमाचल प्रदेश
हेमिस मठ लद्दाख जम्मू कश्मीर
थिकसे मठ लद्दाख जम्मू कश्मीर
शासुर मठ लाहुल समिति हिमाचल प्रदेश
मिड्रालिग मठ देहरादून उत्तराखंड
रूमटेक मठ गंगटोक सिक्किम
तवांग मठ अरुणाचल प्रदेश अरुणाचल प्रदेश
नामड्रालिंग मठ मैसूर कर्नाटक
बोधिमंडा मठ बोधगया बिहार
शैव धर्म —
- शिवलिंग – उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।
- ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है।
- अथर्वेद में शिव को भव , शर्व , पशुपति एवं भूपति कहा गया है।
- लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है।
- रुद्र के पत्नी के रूप में पार्वती का नाम तैतरीय आरण्यक में मिलता है।
- वामन – पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है — पशुपत , कापालिक , कालामुख , लिंगायत
- पाशुपात संप्रदाय शैवों का सर्वाधिक प्राचीन संप्रदाय है।
- पशुपात के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है।
- पाशुपत संप्रदाय का मुख्य केंद्र श्री शैल था।
- लिंगायत संप्रदाय को जंगम भी कहा जाता है।
- शून्य संपादने लिंगायतो का मुख्य धार्मिक ग्रंथ है।
- 10 वी. शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की।
- दक्षिण भारत में शैवधर्म — चालुक्य , राष्ट्रकूट , पल्लव , एवं चोलों के समय लोकप्रिय रहा।
- एलोरा का प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकुटों ने करवाया।
- चोल शासक राजराज प्रथम ने तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया।
- पशुपतिनाथ मंदिर — नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3 km दूर बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में है। 1979 में unesco ने विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
- मुख्य मंदिर का निर्माण वास्तुकला की नेपाली पैगोडा में हुआ है।
वैष्णव धर्म —
- वैष्णव धर्म का विकाश भगवत धर्म से हुआ , नारायण के पूजक मूलतः पंचरात्र कहे जाते थे।
- वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे जो वृषण कबीले के थे और जिनका निवास स्थान मथुरा है।
- कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में देवकी पुत्र और अंगिरस के शिष्य के रूप में हुआ है।
- विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मत्स्यपुराण में मिलता है।
- गुप्तकाल में विष्णु का वराह अवतार सबसे प्रसिद्ध था।
- भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र में छः तिल्लियां है।
इस्लाम धर्म —
- इस्लाम धर्म का संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब थे।
- इनका जन्म 570 ई. में मक्का में प्रमुख कुरैश कबीले में हुआ।
- उनके पिता का नाम अब्दुल्ला और माता का नाम अमीना था।
- उनका लालन – पालन उनके चाचा अबू तालिब ने किया था।
- हजरत मुहमद को को 610 ई. में मक्का के पास हीरा नामक गुफा में ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- पैगंबर के मक्का से मदीना को यात्रा इस्लाम जगत में मुस्लिम संवत ( हिजरी संवत ) के नाम से जाना जाता है।
- मुहम्मद की शादी 25 वर्ष की अवस्था में खदीजा नामक विधवा के साथ हुई।
- मुहम्मद की पुत्री का नाम फातिमा एवं दामाद का नाम अली था।
- अरबी भाषा में संप्रेषित कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है।
- कुरान में 114 अध्यायों और 6360 पद है।
- मुहम्मद साहब की मृत्यु 8 जून 632 ई. को हुई। उन्हे मदीना में दफनाया गया।
- महम्मद साहब की मृत्यु के बाद इस्लाम शिया और सुन्नी दो पंथ में विभाजित हो गया।
- सुन्नी उन्हें कहते है जो सुना में विश्वास रखते है , सुना मुहम्मद साहब के कथनों तथा कार्यों का विवरण है।
- शिया अली को शिक्षाओं में विश्वास रखते है तथा उन्हें मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी मानते है।
- अली की हत्या 661 ई. में कर दी गई।
- अली के पुत्र हुसैन की हत्या 680 ई. में ( इराक ) कर दी गई।
- पैगंबर मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए।
- इस्लाम जगत ने खलीफा का पद 1924 तक रहा।
- 1924 ने इसे तुर्की के शासक कमलपाशा ने समाप्त कर दिया
- इब्न इशाक ने सर्वप्रथम पैगंबर साहब का जीवन – चरित लिखा।
- मुहम्मद साहब के जन्म – दिन पर ईद पर्व मनाया जाता है।
- भारत मे सर्वप्रथम इस्लाम का आगमन अरबों के जरिए हुआ।
- 712 ई. में अरबों ने सिंध जीत लिया और सबसे पहले भारत के इसी भाग में इस्लाम एक महत्वपूर्ण धर्म बना।
- नामक के दौरान मुसलमान मक्का की तरफ मुंह करके खड़े होते है मक्का भारत से पश्चिम की ओर पड़ता है , मक्का की ओर की दिशा को किबला कहा जाता है।
ईसाई धर्म —
- ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह है और उनका प्रमुख ग्रंथ बाइबल है।
- इनका जन्म जेरूसलम के निकट बेथलेहम नामक स्थान पर हुआ था। इनके जन्म दिवस को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है।
- इनकी माता का नाम मेरी और पिता का नाम जोसेफ था।
- इन्होंने अपने जीवन के 30 वर्ष एक बढ़ई के रूप में बिताया।
- इनके प्रथम दो शिष्य थे — एंड्रस एवं पीटर
- ईसा मसीह को 33 ई. में पोंटियस ने सूली पर चढ़ाया।
- ईसाई धर्म का सबसे पवित्र चिन्ह क्रॉस है।
- ईसाई तृत्व में विश्वास रखते है—ईश्वर पिता , ईश्वर पुत्र , ईश्वर आत्मा
- 12 वी. शताब्दी में फ्रांस में ऊंचे एवं हल्के चर्चा के निर्माण प्रारंभ हुए , वास्तुकला की यह शैली गोथिक नाम से जानी जाती है इसका एक सर्वोत्कृष्ठ उदाहरण है नाट्रेडम का चर्च।
पारसी धर्म —
- पारसी धर्म के पैगंबर जरथुस्ट्र ( ईरानी ) थे।
- जेंदा आवेस्ता पारसियों का प्रमुख ग्रंथ है।
- इनके अनुयाई एक ईश्वर अहुर को मानते है।
- इस धर्म के अनुयायियों को अग्नि – पूजक भी कहा जाता है।
मगध राज्य का उत्कर्ष —
- मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक बृहद्रथ थे।
- मगध की राजधानी गिरिब्रज (राजगृह) थी।
- जरासंध बृहद्रथ का पुत्र था।
- हर्यक वंश का संथापक बिम्बिसार था।
- बिम्बिसार ने ब्रह्मादत्त को हराकर अंग राज्य मगध में मिला लिया।
- बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयाई था।
- बिम्बिसार ने राजगृह का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- बिम्बिसार ने मगध पर 52 वर्षों तक शासन किया।
- महात्मा बुद्ध की सेवा में बिम्बिसार ने राजवैद्य जीवक को भेजा अवन्ति के राजा प्रद्योत जब पाण्डु रोग से ग्रसित थे उस समय भी बिम्बिसार ने जीवक को उनकी सेवा – सुश्रुसा के लिए भेजा।
- बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया. इसने कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना से तथा मद्र देश ( पंजाब ) की राजकुमारी क्षेमा से शादी की।
- बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी और वह 493 ई. पू. में मगध की गद्दी पर बैठा।
- आजादशत्रु का उपनाम कुणिक था वह प्रारंभ से जैन धर्म का अनुयायि था।
- आजादशत्रु ने 52 वर्षो तक मगध पर शासन किया ।
- अजातशत्रु के सुयोग्य मंत्री का नाम वर्षकार था. इसी की सहायता से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्त की।
- अजातशत्रु की हत्या उसके बेटे उदायिन ने 461 ई. पू. में कर दी और वह मगध की गद्दी पर बैठा।
- उदायिन ने पाटलिग्राम की स्थापना की और यह भी जैन धर्म का अनुयायि था।
- हर्यक वंश का अंतिम राजा उदायिन का बेटा नागदशक था।
- नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ई. पू. में अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाथ वंश की स्थापना की।
- शिशुनाथ ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की।
- शिशुनाथ का उत्तराधिकारी कालशोक फिर से राजधानी को पाटलिपुत्र ले गया।
- शिशुनाथ वंश का अंतिम राजा नंदिवर्धन था।
- नंदवंश का संस्थापक महापदम नंद था।
- नंदवंश का अंतिम शासक घनानंद था. यह सिकंदर का समकालीन था. इसे चंद्रगुप्त मौर्य ने युद्ध में पराजित किया और मगध पर एक नए वंश मौर्य वंश की स्थापना की।
सिकंदर —
- सिकंदर का जन्म 356 ई. पू. हुआ था।
- सिकंदर के पिता का नाम फिलिप था।
- फिलिप 359 ई. में मकदूनिया का शासक बना. इनकी हत्या 329 ई. पू. में कर दी गई।
- सिकंदर अरस्तू का शिष्य था।
- सिकंदर का सेनापति सेल्युकस निकटर था।
- सिकंदर को पंजाब में राजा पोरस से युद्ध करना पड़ा जिसे हाइडेस्पीज के युद्ध या झेलम ( वितस्ता ) का युद्ध के नाम से जाना जाता है।
- सिकंदर की सेना व्यास ( विपाशा ) नदी के पश्चिमी तट पर पहुंचकर उसे पर करने से इनकार कर दिया।
- सिकंदर 326 ई. पू. में भारत विजय अभियान शुरू किया था और 325 ई. पू. स्थल मार्ग द्वारा भारत से लौट गया।
- सिकंदर की मृत्यु 33 वर्ष की अवस्था में बेबीलोन में हो गई थी।
- सिकंदर के जल सेनापति का नाम निर्याकस था।
- सिकंदर के प्रिय घोड़ा बउकेफला था इसी के नाम पर इसने झेलम नदी के तट पर बउकेफला नामक नगर बसाया।
मौर्य साम्राज्य —
- मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई. पू. हुआ था
- जस्टिन ने चंद्रगुप्त मौर्य को सेंड्रोकॉट्स कहा था।
- विशाखदत कृत मुद्राक्षस में चंद्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल ( आशय – निम्न – कुल में उत्पन्न ) शब्द का प्रयोग किया गया।
- घनानंद को हराने में चाणक्य ( कौटिल्य / विष्णुगुप्त ) ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी. जो बाद में चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री बना. इसके द्वारा लिखित पुस्तक अर्थशास्त्र है।
- चंद्रगुप्त मगध की धरती पर 322 ई. पू. में बैठा और यह जैनधर्म का अनुयाई था।
- चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ई. पू. सेल्युकस निकेटर को हराया।
- सेल्युकस निकेटर ने अपनी पुत्री कार्नेलिया ( हेलना ) की शादी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी और युद्ध की संधि शर्तों के अनुसार चार प्रांत — काबुल , कंधार , हेरात और मकरान को चंद्रगुप्त मौर्य को दिए।
- चंद्रगुप्त मौर्य ने जैनी गुरु भद्रबाहू से जैनधर्म की दीक्षा ली थी।
- मेगास्थनीज सेल्युकस निकेटर का राजदूत था जो चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार ने रहता था।
- मेगास्थनीज द्वारा रचित पुस्तक इंडिका है।
- पाटलिपुत्र एक विशाल प्राचीर से घिरा से जिसमे 570 बुर्ज और 64 द्वार है।
- चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्युकस निकेटर के बीच के युद्ध का वर्णन एम्पियानस ने किया है. प्लुटार्क के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने 500 हाथी सेल्युकस निकेटर को उपहार में दिए थे।
- चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ई. पू. श्रवणबेलगोला में उपवास द्वारा हुई।
बिंदूसार —
- चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिन्दुसार हुआ जो 298 ई. पू. मगध की गद्दी पर बैठा।
- बिंदुसार को अमित्रघात के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है शत्रु विनाशक
- बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयाई था।
- आजीवक संप्रदाय की स्थापना मलखपुत्र गोशाल ने की थी।
- वायुपुराण में बिंदुसार को भद्रसार ( वारिसार ) कहा गया है।
- स्ट्रेबों के अनुसार सीरियन नरेश आंतियोकस ने बिंदुसार के दरबार में डाईमेकस नामक राजदूत भेजा , इसे ही बिंदुसार का उत्तराधिकारी माना जाता है।
- जैनग्रंथों में बिंदुसार को सिंहसेन कहा गया है
- बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला ( सिंधु एवं झेलम नदी की बीच ) में हुए दो विद्रोहो का वर्णन है. इस विद्रोह को दबाने के लिए बिंदुसार ने पहले सुसीम को और बाद में अशोक को भेजा।
- बौद्ध विद्वान तारानाथ ( तिब्बती लेखक ) ने बिंदुसार को 16 राज्यो का विजेता बताया है।
- बिंदुसार के सभा में 500 सदस्यों वाली एक मंत्री परिषद थी जिसका प्रधान खल्लाटक था।
अशोक —
- बिंदुसार का उत्तराधिकारी अशोक हुआ जो 269 ई. पू. में मगध की गद्दी पर बैठा।
- अशोक की माता का नाम शुभद्रांगी था। (दिव्यावदान के अनुसार )
- राजगद्दी पर बैठने के समय अशोक अवंती का राजपाल था
- मास्की , गुर्जरा , नेत्तूर और उड़ेगोलम के लेखों में अशोक का नाम अशोक मिलता है।
- कर्नाटक के गुलबर्गा जिला के कनगनहली से प्राप्त उभारदार मूर्तिशिल्प ( रिलीफ स्कल्पचर ) शिलालेख में अशोक के प्रस्तर रूपचित्र के साथ राण्यो अशोक ( राजा अशोक ) उल्लेखित है।
- भ्राबु अभिलेख में अशोक ने स्वयं को मगध का राजा बताया है।
- पुराणों में अशोक को अशोकावर्धन कहा गया है।
- अशोक ने अपने अभिषेक के 8 साल बाद 261ई. पू. में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली कर अधिकार कर लिया। ( 13 वे. शिलालेख में उल्लेख है )
- उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
- अशोक पहले ब्राह्मण धर्म का अनुयाई था , राजतरंगिणी से पता चलता है की वह शैव धर्म का उपासक था , निग्रोध के प्रवचन सुनकर उसने बौद्ध धर्म को अपन लिया।
- अहरौरा अभिलेख में यह घोषणा की गई है की अशोक व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म का अनुयाई था।
- अशोक ने एक उपासक के रूप मे अपने राज्याभिषेक के बाद 10 वे वर्ष बोधगया की , 12 वे वर्ष निगाली सागर की एवं 20 वें वर्ष में लुंबिनी की यात्रा की।
- अशोक ने अजीबको को रहने के लिए बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया, जिनका नाम कर्ज , चौपर , सुदामा तथा विश्व झोपड़ी था।
- अशोक के पौत्र दशरथ ने आजीविको को नागार्जुन गुफा प्रदान की थी।
- अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
- बौद्ध परंपरा और उनके लिपियों के अनुसार अशोक ने 84000 स्तूप का निर्माण किया था।
- अशोक के शिलालेखों में ब्राम्ही , खरोष्ठी , ग्रीक एवं और अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है।
- ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का अभिलेख अफगानिस्तान से , खरोष्ठी लिपि का अभिलेख शाहवाजगढ़ी एवं मानसेहरा ( पाक. ) से तथा शेष भारत से ब्राह्मी लिपि के अभिलेख मिले है।
- अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बांटा जा सकता है 1 – शिलालेख , 2 – स्तंभलेख , 3 – गुहालेख
- अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में पाद्रेटी फैंथेलर ने की थी।
अशोक के अभिलेख पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ई. को जेम्स प्रिंसेप को हुई।
अशोक के स्तंभ – लेखों की संख्या 7 है जो केवल ब्राह्मी लिपि में लिखी गई है।
कौशांबी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है।
अशोक का सातवां अभिलेख सबसे लंबा है ,अशोक का सबसे छोटा स्तंभ-लेख रूमीदेई है।
ब्राह्मण साम्राज्य —
- बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई. पू. में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नीव डाली।
- शुंग शासकों ने अपनी राज्यधानी विदिशा में स्थापित की।
- पुष्यमित्र शुंग ने दो बार अश्वमेघ यज्ञ किया।
- भरहुत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया।
- शुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था।
- देवभूति की हत्या 73 ई. पू. में वासुदेव ने कर दी और मगध पर कण्व वंश की स्थापना की।
- कण्व वंश का अंतिम शासक सुशर्मा हुआ।
सातवाहन राजवंश —
- शिमुक ने 60 ई. पू. में सुशर्मा की हत्या कर दी और सातवाहन वंश की स्थापना की ।
- सातवाहन शासकों ने अपनी राज्यधानी प्रतिष्ठान ( गोदावरी नदी के तट पर औरंगाबाद , महाराष्ट्र ) में स्थापित की ।
- सातवाहनो की भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी थी।
- सातवाहनों का समाज मातृसतात्मक था।
चेदी राजवंश —
- अशोक की मृत्यु के उपरांत संभवतः प्रथम शताब्दी में कलिंग में चेदी राजवंश का उदय हुआ , इसकी जानकारी हमे हाथीगुंफा अभिलेख से मिलता है
- कलिंग राज खारवेल इस वंश का एक प्रतापी राजा था।
- खारवेल जैन धर्म का अनुयाई था।
- उदयगिरी पहाड़ी में गुफा का निर्माण खारवेल में करवाया।
भारत के यवन राज्य —
- भारत पर आक्रमण करनेवाले विदेशी आक्रमणकारियों का क्रम हिंद – यूनानी —> शक —> पहलव —> कुषाण।
- भारत पर सबसे पहले आक्रमण बैक्टीरिया ( हिंद – यूनानी )के शासक डेमीट्रीयस ने किया ।
- भारत ने सबसे पहले हिंद – यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए।
- चुकी परदा यूनानियों की देन है इसलिए वह यवानिका के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
शक —
- यूनानियों के बाद शक आए , शकों की पांच शाखा थी हर शाखा की राज्यधनी भारत और अफगानिस्तान में अलग अलग भागों में थी।
- प्रथम शक राजा मोअ था , शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे और चारागाह की खोज में भारत आए।
- 58 ई. पू. में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित कर बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
- शकों पर विजय के उपलक्ष्य में एक नया संवत विक्रम संवत के नाम से प्रारंभ हुआ , उसी समय से विक्रमादित्य एक लोकप्रिय उपाधि बन गई जिसकी संख्या भारतीय इतिहास में 14 तक पहुंच गई।
- शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था जिसने गुजरात के काठियावाड़ को सुदर्शन झील ( मौर्यों द्वारा निर्मित ) का जीर्णोद्धार किया।
- भारत ने शक राजा अपने को क्षत्रप कहते थे।
पहलव —
- पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्शियाई लोगो का आधिपत्य हुआ। सबसे प्रसिद्ध पार्शियायी राजा गोडोफनिर्स था।
- पार्शियाई लोगो का मूल स्थान ईरान में था।
कुषाण —
- पहलव के बाद कुषाण आए जो युची एवं तोखरी भी कहलाते है।
- कुषाण वंश का संस्थापक कुजुल कडफिसेस था।
- इस वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था इनकी राज्यधानी पेशावर थी। ( दूसरी राज्यधानी मथुरा थी )
- कनिष्क ने 78ई. में एक संवत चलाया शक संवत।
- चीनी जनरल पेन चौआ ने कनिष्क को हराया था।
- सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के कुषाणों ने जारी किया था।
- सर्वाधिक तांबे के सिक्के कुषाणों ने जारी किया था।
- कनिष्क का राजवैध चरकसहिता के रचैता चरक थे।
- भारत का आइंस्टीन नागार्जुन को कहा जाता है ।
- नागार्जुन कृत माध्यमिक सूत्र है ( इसमें नागार्जुन ने सापेक्षता का सिद्धांत दिया।
- कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था।
- कुषाण राजा देवपुत्र कहलाते थे यह उपाधि कुषाणों ने चीनियों से ली।
- रेशम मार्ग का आरंभ कनिष्क ने कराया था।
गुप्त साम्राज्य —
- गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त था ( 240 – 280 )
- श्री गुप्त का उतराधिकारी घटोत्कच हुआ ( 280 – 320 )
- गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम ने महाराजधिराज की उपाधि धारण की ।
- चंद्रगुप्त प्रथम का उतराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ।
- समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है।
- समुद्रगुप्त ने अश्वमेघकर्ता , विक्रमंक एवं परमभागवत की उपाधि धारण की। इसे कविराज भी कहा जाता है।
- परमभागवत की उपाधि धारण करने वाला प्रथम गुप्त शासक समुद्रगुप्त था।
- समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था।
- समुद्रगुप्त का उतराधिकारी चंद्रगुप्त- 11 हुआ तथा इसी के शासन काल में चीनी बौद्ध यात्री फहियान भारत आया था।
- चंद्रगुप्त 11 का उतराधिकारी कुमारगुप्त- 1 या गोविंदगुप्त हुआ।
- नालंदा विश्विद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी।
- कुमारगुप्त का उतराधिकारी स्कंदगुप्त हुआ।
- अंतिम गुप्त शासक विष्णुगुप्त था।
- गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं जारी की।
- मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्तकाल में ही हुआ।
- गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।
बाकाटक राजवंश —
- बाकाटक वंश की स्थापना 255 ई. में विंध्यशक्ति नामक व्यक्ति ने की था । इसके पूर्वज सातवहनों के अधीन थे।
- विंध्यशक्ति का उतराधिकारी प्रवरसेन- 1 ( 275 – 335 ) हुआ।
- प्रवरसेन- 1 वाकाटक वंश का पहला शासक था जिसने सम्राट की उपाधि धारण की।
- प्रवरसेन- 1 के बाद वाकाटक वंश दो शाखाओं में विभक्त हो गया प्रधान शाखा और बासिय शाखा ।
- हरिषेन वाकाटक वंश का अंतिम ज्ञात शासक था।
- वैधर्भी शैली का पूर्ण विकास वाकाटक नरेशों के दरबार में हुआ।
पुष्यभूति या वर्द्धन वंश —
- पुष्यभुति वंश का संस्थापक पुष्यभुति था और इनकी राज्यधानी थानेश्वर ( हरियाणा में कुरुक्षेत्र में ) था।
- प्रभाकरवर्द्धन इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था तथा प्रथम प्रभावशाली शासक था जिसने परमभट्टारक और महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
- प्रभाकरवर्द्धन की पत्नी यसोमती से दो पुत्र — राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन तथा एक कन्या राज्यश्री उत्पन्न हुई।
- शशांक शैव धर्म का अनुयाई था इसने बोधिबृक्ष को कटवा दिया था।
- हर्षवर्द्धन को शिलादित्य के नाम से भी जान जाता था इसने भी परमभट्टारक की उपाधि धारण की थी।
- हर्ष ने शशांक को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा उसे अपनी राज्यधानी बनाया।
- प्रारंभ में हर्ष कुल देवता शिव का परम भक्त था लेकिन चीनी यात्री हेनसांग से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म अपनाया।
- बाणभट्ट हर्ष के दरबारी कवि थे, उन्होंने हर्षचरित एवं कादंबरी की रचना की।
- हर्ष को भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट कहा जाता है।
- हर्षचरित ने प्रांतीय शासक के लिए लोकपाल शब्द आया है।
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश ( पल्लव वंश ) —
- पल्लव वंश का संस्थापक सिंह विष्णु था , इसकी राज्यधानी कांची ( तामिलनाडू ने कांचीपुरम ) थी , वह वैष्णव धर्म का अनुयाई था।
- किरातार्जुनियम के लेखक भारवी सिंह विष्णु के दरबार में रहते थे।
- महाबलीपुरम के एकाश्म मंदिर जिन्हे रथ कहा गया है का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा कराया गया था।
- रथ मंदिरों की संख्या 7 थी जिनमे द्रौपदी रथ सबसे छोटा था और उसमे किसी प्रकार का अलंकरण नही था।
- वातापीकोंड और महामल्ल को उपाधि नरसिंहवर्मन- 1 ने धारण की थी।
- लोकादित्य , एकमल्ल , रणंजय , अत्यंतकाम , उग्रदंड , गुनभाजन जैसी उपाधियां परमेश्वर वर्मन प्रथम ने की थी। और यह विद्याप्रेमी था इसलिए विद्याविनित की उपाधि भी ली थी।
- राजसिंह , आगमप्रिय ( शास्त्रों का प्रेमी ) और शंकरभक्त की उपाधि नरसिंह वर्मन 11 ने धारण की थी।
- नरसिंह वर्मन 11 ने कांची के कैलाश मंदिर (राजसिद्धेश्वर मंदिर ), मुक्तेश्वर मंदिर , बैकुंठ पेरूमाल मंदिर का निर्माण करवाया था।
चोल वंश —
- चोल वंश के संस्थापक विजयालय थे जिसकी राज्यधानी तांजाय ( तंजौर ) था।
- विजयालय ने नरकेशरी के उपाधि धारण की और निशुंभसूदनी मंदिर का निर्माण करवाया।
- चोलो का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम ने स्थापित किया , पल्लवों पर विजय पाने के उपरांत आदित्य ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की।
- राजेंद्र द्वितीय ने प्रकेशरी एवं वीर राजेंद्र ने राजकेशरी की उपाधि धारण की।
- चोल वंश का अंतिम राजा राजेंद्र तृतीय था।
चालुक्य ( कल्याणी ) —
- कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना तैलप द्वितीय ने की थी और इसकी राज्यधानी मान्यखेत थी ।
- सोमेश्वर प्रथम ने राज्यधानी मान्यखेत से हटाकर कल्याणी ( कर्नाटक ) को बनाया
- इस वंश का सबसे प्रतापी राजा विक्रमादित्य V1 था।
- मिताक्षरा नामक ग्रंथ की रचना विज्ञानेश्वर ने की थी।
- विक्रमांकदेवचरित की रचना विल्हण ने की थी इसमें विक्रमादित्य V1 के जीवन पर प्रकाश डाला गया है।
चालुक्य ( वातापि ) —
- जयसिंह ने वातापि के चालुक्य वंश की स्थापना की जिसकीराज्यधानी वातापि ( बीजापुर के निकट ) थी।
- जिनेन्द्र का मेगुती मंदिर पुलकेशीन -2 ने बनवाया था।
पुलकेशिन – 2 ने हर्षवर्धन को हराकर परमेश्वर की उपाधि धारण की , इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि भी धारण की थी।
वातापि का निर्माणकर्ता कीर्तिवर्मन को माना जाता है।
इस वंश का अंतिम राजा कीर्तिवर्मन -2 था , इसे इसके सामंत दंतीदुर्ग ने परास्त कर एक नए राजवंश ( राष्ट्रकूट ) वंश कीस्थापना की थी।
राष्ट्रकूट —
- राष्ट्रकूट राजवंश का संस्थापक दंतीदुर्ग था ,इसकी राज्यधानी मनकीर या मान्यखेत थी।
- एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था।
- ध्रुव राष्ट्रकूट का पहला शासक था जैन कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया।
- ध्रुव को धरावर्ष भी कहा जाता है।
- राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण तृतीय था इसी के
- दरबार ने कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न रहते थे जिन्होंने शांतिपुराण की रचना की।
- एलोरा गुफा का सर्वप्रथम उल्लेख फ्रांसीसी यात्री थेविनेट ने 17वी. शताब्दी में किया था।
चालुक्य वंश ( बेंगी ) —
- वेंगी के चालुक्य वंश का संस्थापक विष्णुवर्धन था , इसकी राज्यधानी बेंगी ( आंध्रप्रदेश ) थी।
- इस वंश का सबसे प्रतापी राजा विज्यादित्त -3 था जिसका सेनापति पंडरंग था।
यादव वंश —
- देवगिरी के यादव वंश की स्थापना भिल्लम पंचम ने की , इसकी राज्यधानी देवगिरी थी।
- इस वंश का सबसे प्रतापी राजा सिंहन था।
- इस वंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचंद्र था जिसने अलाउद्दीन के सेनापति मालिक कफूर के सामने आत्म समर्पण किया।
कदम्ब वंश —
- कदम्ब वंश की स्थापना मयूर शर्मन ने की थी और इसकी राज्यधानी वनवासी था।
गंग वंश —
- गंग वंश का संस्थापक वज्रहस्त पंचम था।
- अभिलेखों के अनुसार गंग वंश का प्रथम शासक कोकणी वर्मा था
- गंगो की प्रथम राज्यधानी कुवलाल थी जो बाद में तलकाड हो गई।
- दत्तकसूत्र पर टीका लिखने वाला गंग शासक माधव प्रथम था।
काकतीय वंश —
- काकतीय वंश का संस्थापक बीटा प्रथम था , जिसकी राजधानी अमकोंड थी।
- इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक गणपति था।
- इस राजवंश का अंतिम शासक प्रताप रुद्र था।
पालवंश —
- पाल वंश का संस्थापक गोपाल था , इस वंश की राजधानी मुंगेर थी।
- ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना गोपाल ने की थी।
- पाल वंश का सबसे महान शासक धर्मपाल था जिसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
- ओदंतपुरी के प्रसिद्ध बौद्ध मठ का निर्माण देव पाल ने करवाया था
- गौङीरीति नामक साहित्यिक विद्या का विकास पाल शासकों के समय हुआ।
सेनवंश —
- सेन वंश की स्थापना सामंत सेन ने राढ में की थी इसकी राजधानी नदिया ( लखनौती ) थी।
- सेन वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक विजय सेन था।
- दानसागर एवं अद्भुतसागर नामक ग्रंथ की रचना सेन शासक वल्लालसेन की थी। अद्भुत सागर को लक्ष्मण सेन ने पूर्ण रूप दिया था।
- विजयसेन ने देवपाड़ा में प्रदुम्नईश्वर मंदिर की स्थापना की।
- सेन राजवंश प्रथम राजवंश था जिसने अपना अभिलेख सर्वप्रथम हिंदी में उत्कीर्ण करवाया।
- लक्ष्मण सेन बंगाल का अंतिम हिंदू शासक था।
कश्मीर के राजवंश —
- दुर्लभवर्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की थी।
- कार्कोट वंश का सबसे शक्तिशाली राजा ललितादित्य मुक्तापीड था
- कश्मीर का मार्तंड मंदिर का निर्माण ललितादित्य मुक्तापीड के द्वारा करवाया गया था।
- कार्कोटवंश के बाद कश्मीर पर उत्पल वंश का शासन हुआ इस वंश का संस्थापक अवंतिवर्मन था।
- अवंतिवर्मन के अभियंता सुय्य ने सिंचाई के लिए नहर का निर्माण करवाया।
- उत्पल वंश के बाद कश्मीर पर लोहार वंश का शासन हुआ।
- लोहार वंश का संस्थापक संग्रामराज था।
- जयसिंह लोहार वंश का अंतिम शासक था , जय सिंह के शासन के साथ ही कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण समाप्त हो जाता है।
कामरूप का वर्मन वंश —
- चौथी शताब्दी के मध्य कामरूप में वर्मन वंश का उदय हुआ।
- वर्मन वंश का संस्थापक पुष्यवर्मन था एवं इसकी राजधानी प्राग – ज्योतिष नामक स्थान पर थी।
- कालांतर में कामरूप पाल साम्राज्य का एक अंग बन गया।
गुर्जर प्रतिहार वंश —
- मालवा का शासक नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था।
- प्रतिहार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा मिहिरभोज था।
- मिहिर भोज ने अपनी राजधानी कन्नौज में बनाई थी।
- इस वंश का अंतिम राजा यशपाल था।
- दिल्ली नगर की स्थापना तोमर नरेश अनंगपाल ने 11वीं शताब्दी के मध्य में की।
गहड़वाल ( राठौर ) राजवंश —
- गहढ़वाल वंश का संस्थापक चंद्रदेव था , इसकी राजधानी वाराणसी थी।
- इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा गोविंदचंद्र था।
- पृथ्वीराज तृतीय ने स्वयंवर से जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था।
- इस वंश का अंतिम शासक जयचंद था जिसे गौरी नगर ने 1194 के चंदावर युद्ध में मार डाला।
परमार वंश —
- परमार वंश का संस्थापक उपेंद्रराज था इसकी राजधानी धारा नगरी ( उज्जैन ) थी।
- इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा राजा भोज था।
- भोज ने अपनी राजधानी में सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया था और इस मंदिर के परिसर में संस्कृत विद्यालय भी खोला गया था।
- राजा भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया।
- भोजपुर नगर की स्थापना राजा भोज ने की थी।
चाहमान ( चौहान ) वंश —
- चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव था , इस वंश की प्रारंभिक राजधानी अहिच्छत्र थी , बाद में अजयराज द्वितीय ने अजमेर नगर की स्थापना की और उसे राजधानी बनाया।
- इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक अर्नोराज के पुत्र विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव हुआ।
- पृथ्वीराज तृतीय इस वंश का अंतिम शासक था।
- चंदबरदाई पृथ्वीराज तृतीय का राजकवि था जिसकी रचना पृथ्वी राजरासो है।
- रणथंबोर के जैन मंदिर का शिखर पृथ्वीराज तृतीय ने बनवाया था।
- तराइन का प्रथम युद्ध 1191 मैं हुआ जिसमें पृथ्वीराज तृतीय की विजय एवं गौरी की हार हुई।
- तराइन के द्वितीय युद्ध 1192 में हुआ इसमें गौरी की विजय एवं पृथ्वीराज तृतीय की हार हुई।
चंदेल वंश —
- चंदेल वंश का संस्थापक नन्नुक था , तथा इसकी राजधानी खजुराहो थी , प्रारंभ में इसकी राजधानी कालिंजर थी , राजा धंग ने अपनी राजधानी कालिंजर से खजुराहो में स्थानांतरित की थी।
- चंदेल वंश का सबसे प्रतापी एवं प्रथम स्वतंत्र राजा यशोवर्मन था।
- धंग जिन्नात विश्वनाथ एवं बैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
- कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण भी धंग देव द्वारा किया गया।
- धंग ने गंगा यमुना के संगम में शिव की आराधना करते हुए अपने से अपने शरीर का त्याग किया।
- चंदेल वंश का अंतिम शासक परमर्दीदेव था।
सोलंकी वंश अथवा गुजरात के चालुक्य वंश —
- सोलंकी वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था , तथा इसकी राजधानी नहीं अन्हिलवाड थी , और यह सब धर्म का अनुयाई था।
- सोलंकी वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक जयसिंह सिद्धराज था।
- सोलंकी वंश का अंतिम शासक भीम द्वितीय था।
कलचुरी – चेदी वंश —
- कलचुरी वंश का संस्थापक को कल था , तथा इसकी राजधानी त्रिपुरा थी।
- इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक गांगेयदेव था।
- कलचुरी वंश का सबसे महान शासक कर्णदेव था जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की और त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की।
सिसोदिया वंश —
- सिसोदिया वंश के शासक अपने को सूर्यवंशी कहते थे , जो मेवाड़ पर शासन करते थे।
- मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ थी।
- अपने विजयों के उपलक्ष में विजयस्तंभ का निर्माण राणा कुंभा ने चित्तौड़ में करवाया।
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- Simple – interest
- Compound interest
- Discount
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- mixture & alligation
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- Boat & Stream
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- Height & Distance
- Algebra
- Mensuration
- Geometry